दोस्तो आज की कहानी ऐसे इंसान की है जिसका नाम समूझ चौधरी और मिलन चौधरी है । एक दौर आइसा था जब समुझ की पीता बहोत ही ग़रीब थे। पुरा दिन माजदूरी करते और शाम को कुछ पैसे मिलने से राशन का सामान लेकर आते और फिर खाना बनता। जीस दीन काम नहिं मिल्ता उस दीन तो कुच्छ खाने को भी नहीं मिलता था। चूल्हा ही नहीं जलता और पनी से ही पेट भरना पड़ता था। ये सब घर का हाल देख कर समूझ बहूत परेशान रहता।
घर का बडा बेटा था ईस लिए बहूत साऱी परेशानियां देख कर उलझन मे रहता और एक दिन गोरखपुर जा के कुली का काम करने लगा एक साल काम कर के कुच्छ पैसे इखट्टा किया और घर का हालात को कुछ बेहतर किया। कुुुछ समय बाद घरवालो ने समुझ की शदी करवा दी । कुछ दिन घर पर रहने के बाद समूझ फिर से ररगोरखपुर कमाने चला गया। समुझ का दिल काम से संतुष्ट नहीं था और घर का खर्चा बढ ऱहा था समूझ परेशान रहता था। एक दिन घर आया और कुछ दिनों के बाद अपना कपड़े झोले में रखा और मुंबई चल दिया।
मुंबई आने के बाद काम की तलाश में शामिल हों गया जब कोई काम नहीं मिला तो जाकर सानताकूरज नाका पे खड़ा हो जाता देहारी मज़दूरी के लिये । यह सिलसिला महीनों तक चला, जिस दिन काम मिला उस दिन मज़दूरी मिल जाता। एक दिन सूमझ को एक कॉनट्र्रै्क्टर से मुलाकात हुई और उसके साइड पे काम करने लगा। मुम्बई में उसकी पहली मज़दूरी 40 रूपये थी ।
उसने तीन साल कड़ी मेहनत की। इस तीन साल में उसे गांव की बड़ी याद अति, अति भी कियूं नही उसका घर परिवार सब लोग तो गांव में थे। मुम्बई से ही पैसा घर भेेेज दिया करता।। उसके बाद जब कभी भी गांव जाता तो मात्र 15 दिन में लौट आता। काम के प्रति उसकी निष्ठा से लोग प्ररभावित थे। लोग उसकेे काम से इतना खुश थे कि लोग उसे ढूंढ़ ने लगे काम के लिए। उसमे काम का इतना समझ आ गया था कि उसका आत्मविस्वास उसे पेंटिंग का बड़ा काम करने के लिये प्रेरित करता था। एक कहावत है ना
"भगवान उसी की मदत करता है जो खुद की अपनी मदत करता है"
जैसे ही उसने अपनी चाह बनाई बड़ा काम करने की , उसे एक सुरुवात मिल गई। एक दो कमरे वाल घर पेंटिंग के लिए मटेरियल सहित पूरा ठिकेदारी काम मिल गया। काम तो मिल गया लेकिन मेटीरियल के पूर्ण तह कैस पैसा नही था। उसने हिम्तत कर के काम तो ले लिया लेकिन मटेरियल के लिए पैसे जूटना कठिन लग रहा था। चूंकि ये उसका पहला ठिकेदारी था शायद इसलिए घर मालिक ने कोई एडवांस भी नही दिया था और उसने मांगा भी नही। समूझ परेशान था अपने गॉव वालो के पास गया उन सभी लोगों से मदद मॉगी लोग उसे पैसा दिये और समूझ काम चालु कर दिया इस तरह से गॉव वालो की मदद ले कर काम करता रहा।
एक दिन एक बड़ा बिलडर अपने बिलडींग का काम देने को बोला समुझ हा कर दिया। ऱूम पर आके सोचने लगा काम बडा है बहुत सारे पैसा लगने वाला है, बहुत परेसान हो गया अंदर से रो पड़ा और भगवान से बहुत सिकायत करने लगा मायूस हो गया उसे लगने लगा कि शायद काम नही कर पाएगा, देर रात तक जागते रहा और भगवान से कभी प्राथना करता तो अपनी कमजोर परिस्थितियों के लिये शिकायत, और कब उसकी आँख लग गई उसे पता ही नही चला।
सुबह 5 बजे उसकी नींद दरवाजा की खटखटाहट से खुली। दरवाजा खोला तो अपने छोटा भाई मिलन चौधरी को देखा उसे बहुत खुशी हुई । कुछ समय तक घर परिवार और गांव की बाते हुुुई ,साथ मे चाय पानी के बाद मिलन ने समूझ के हाथों में एक थैली दिया समूझ खोल के देखा तो उसके चेहरे पर एक खुशी की लहर दौड पड़ी उसमे 65 हजार रुपये थे समूझ अपने मिलन को बोला तुम आराम करो मै साम को मिलता हूँ और चला गया, नाका पर से कुुुछ मजदूरो को ले कर बिल्डर की साइड पर जा कर काम चालू कर दिया 2 दिन बाद उसने मिलन से पुछा ऐ पैसा कहा से लाया घर पे तो पैसा नहीं था मिलन बोला भइया एक दिन एक शादी मे से रात को आरहा था कुछ दूर पे कुछ लोग कुछ छुपा ऱहे थे मै छीप के देख रहा था जब वो लोग चले गये तो जाकर देखा तो उसके अंदर गहने थे मैं निकाल के ले लिए और उसे बेच दिया और जो पैसे मिले ले कर मुंबई आ गया।
अब दोनों भाई मील के मेहनत करने लगे और आज उनके पास करीब 700 लोग काम करते हैं, और मुंबई में 70 करोड़ की प्रोपर्टी है। गाड़ी बंगला सब कुुुछ। गोरखपुर मे 22 करोड की मीलकियत है।
दोस्तों ऐसे लोगो की दास्तान से हम सभी को एक ऊर्जा मिलता हैं और हम सभी को कुछ बनने कुछ कर गुजरने के लिए प्रेरीत करता है।
हमे खुद के अंदर जीद् होना ज़रूरी है। हमारी जीद हमे कुछ पाने की ललक को बनाये रखती है। इंसान अगर लगन औऱ धैर्य पूर्वक निरन्तर अपना काम करे औऱ आगे बढ़ने की कोशिस करता रहै तो हारी हुआ बाजी भी जित सकता है।
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